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कविता--स्त्री की आकांक्षा

कविता--स्त्री की आकांक्षा

मैं एक स्त्री हूं 
मेरा आत्मसम्मान है 
मेरे भीतर स्वाभिमान है
मैं उसे डिगने नहीं दूंगी
मेरे स्त्रीत्व का सम्मान करो
 मुझे मेरा अधिकार दो

 मैं एक स्त्री हूं
मेरी भी इज्जत है 
मुझे कूड़े में लपेट कर ना फेंको
 विधाता ने मुझ में भी जिंदगी दी है
 इस जिंदगी का सम्मान करो
 तुम मेरा अपमान ना करो

मैं एक स्त्री हूं 
मुझ में उसका गर्व है
 मैं  पुरुष के बराबरी मैं चलूंगी
 उसका मुझे हक है 
यह  अधिकार मैं लेकर रहूंगी
अपना सम्मान बना कर चलूंगी।

***
सीमा..✍️🌷
©®
#लेखनी काव्य प्रतियोगिता

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7 Comments

Swati chourasia

20-Sep-2022 07:47 PM

बहुत खूब 👌

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Suryansh

16-Sep-2022 07:42 AM

बहुत ही उम्दा और सशक्त रचना

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Supriya Pathak

08-Sep-2022 11:51 PM

Achha likha hai 💐

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